कांटेदार फल वाला चमत्कारी पेड़, 600 साल है आयु! गठिया का रामबाण इलाज, जाने इस पेड़ का नाम।
आज आपके लिए बहुत खास चीज लेकर आये है। वैसे तो प्रकृति में कई तरह की वनस्पतियां पाई जाती है जिनमें कई पेड़-पौधे, फल स्वास्थ के लिए भी बेहद लाभदायक होते हैं आज हम आपको पहाड़ में मिलने वाले एक ऐसे ही फल के बारे में बताने जा रहे हैं जो वैसे तो बेहद कठोर है लेकिन कई औषधीय गुणों से भरपूर है और कई तरह की बीमारी भी ठीक होती है हम बात कर रहे हैं पहाड़ों में उगने वाले ‘पांगर’ की, जिसे अंग्रेजी में ‘चेस्टनेट’ कहा जाता है अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में इसकी खेती होती है। चलिए जानते कैसे की जाती है इस पेड़ की खेती।
कैसे की जाती खेती पांगर पेड़ की
इस पेड़ की भी खेती आम पेड़ों की तरह की जाती है जैसा कि अपन नॉर्मल पेड़ों की खेती करते हैं वैसे ही इस पेड़ की भी खेती की जाती है इस पेड़ की खेती पोधो के द्वारा की जाती है इसके पौधे नर्सरी में आपको बेहद ही आसान से मिल जाएंगे उसके बाद खेतों को तैयार करके इस पौधों को लगा दिया जाता है पर खेतों को तैयार करने के लिए गोबर की खाद और अन्य खाद्य खेतों में मिलाया जाता है जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए उसके बाद गड्ढे किए जाते हैं फिर उसके बाद तैयार किए गए पौधों को एक-एक सेंटीमीटर की दूरी पर पौधों को लगा दिया जाता है और इन पेड़ों को अच्छे से उगाने में करीबन 5 से 6 साल का समय लगता है और इस पेड़ की सबसे खास बात यह 600 साल से भी ज्यादा जीवित रहते हैं यह फलके पेड़।
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गठिया रोग का रामबाण इलाज
कई बड़े डॉक्टर बताते है कि चैस्टनेट में फिनौल, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, स्टार्च समेत कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसे कम मात्रा में खाना ही लाभदायक है. यह कांटेदार फल के रूप में जाना जाता है. यह गठिया के रोग में भी बेहद लाभप्रद है. उत्तराखंड का मौसम इसके अनुकूल है यही वजह है की उत्तराखंड में पांगर के पेड़ उगते हैं. पांगर का सेवन उबालकर, कच्चा यां फिर राख में भूनकर किया जाता है।
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